* वेनिस - सागर की लहरों पर तैरता शहर

ओ सोले मियो
स्टा न फ्रोंटे अ टे !
ओ सोले
ओ सोले मियो
स्टा न फ्रोंटे अ टे !
स्टा न फ्रोंटे अ टे !

इस मधुर गीत को वेनिस के नाविक गोंडोला चलाते समय अकसर गुनगुनाते हैं.  इटेलियन भाषा के इस प्रसिद्ध
गीत के मायने हैं, "क्या खुबसुरत चमकीली सुहानी सुबह है ! एक तुफान के बाद की शांत हवा !! यह ताजी हवा एक उत्सव की तरह लग रही है !!! क्या खुबसुरत चमकीली सुहानी सुबह है !!!! किन्तु यहां कोई दुसरा सुरज नहीं है ! इससे ज्यादा खुबसुरत, मेरा अपना सुरज !! वह भी तुम्हारे चेहरे में. सुरज, मेरा खुद का सुरज !!! वह भी तुम्हारे चेहरे में. वह भी तुम्हारे चेहरे में !!!!". 

वेनिस का नाम सुनते ही आपके ख्याल में पानी व नाव ही आये होंगे. बिलकुल सही,  वेनिस व पानी का तो जैसे चोली - दामन जैसा साथ है. यह छोटा मगर बेहद खुबसुरत शहर उत्तरी पुर्व इटली के एड्रियाटिक सागर के किनारों पर दलदली मुहानों के मध्य भाग पर जहां दो नदियां पो व पैव नदियों आकर मिलती हैं, पर बसे लगभग 118 द्वीपों को आपस में जोडकर बनाया गया है. ये समस्त द्वीप लेगुन पर स्थित हैं, जहां समुद्र का  
पानी बहुत कम गहरा है. इन द्वीपों से मिलकर बने वेनिस का क्षेत्रफल 414 वर्ग किलोमीटर है, व आबादी तीन लाख से कम ही है. 

वेनिस को इटेलियन भाषा में वेनेजिया व जर्मन में वेनेडीश भी कहते हैं. इसके अलावा इस अद्वितीय शहर के ओर भी कई नाम हैं जैसे, एड्रियाटीक सागर की महारानी, पानी का शहर, मुखौटों का शहर, पुलों का शहर, 
टापुओं का शहर, पानी पर बहता हुआ शहर, नहरों का शहर, युरोप का सबसे रोमान्टिक शहर. आखिर क्यों ना हों, वेनिस दुनिया के सबसे खुबसुरत दस शहरों में से एक जो है.

मैनें अपनी प्रत्येक युरोप यात्रा के दौरान वेनिस आने के बारे में सोचा, लेकिन संयोग नहीं बन पाया. एक गर्मियों में मेरा आस्ट्रिया की राजधानी विएना जाना हुआ, जहां से वेनिस लगभग 500 किलोमीटर है. सप्ताहांत पर मैनें
वेनिस घुमने का प्लान बनाया. शुक्रवार की शाम साढे सात बजे मैनें वेनिस आने के लिये को ट्रेन पकडी. रात का सफर था, अतः स्लीपिंग कोच मे रिजर्वेशन करवा लिया था. युरोप में अगर हम ट्रेन छुटने के कुछ दिन पहले से टिकट खरीद लें तो किराया लगभग आधा ही लगता है. हालांकी कई बार आफ सीजन में हवाईजहाज के टिकट अगर बहुत पहले खरीद लिये जायें, तो हो सकता है कि ट्रेन या बस से भी सस्ते मिल जायें. पर मैं जहां तक हो सके ट्रेन से ही जाना पसंद करता हुं, कारण इससे हमें उन स्थानों को नजदीक से देखने के अलावा स्थानिय निवासीयों से भी बातचीत का मौका मिल पाता है. 

विएना से ट्रेन छुटने के बाद टिकट चेकर आया व हमें समझाकर गया कि रात को अपने कम्पार्टमेंट का दरवाजा लगाकर ही सोना, क्योंकि सामान की चोरी हो सकती है. तब मुझे खयाल आया कि अब हम आस्ट्रिया से इटली की ओर जा रहे हैं, जो माफिया लोगों का घर है. मेरे कम्पार्टमेंट के बाकी यात्रियों को रोम तो जाना था, सिर्फ मैं अकेला ही था जिसे रास्ते में वेनिस जाने के लिये उतरना था. उन्हीं में एक विएना युनिवर्सीटी में हिस्ट्री की प्रोफेसर भी थीं, जो कई बार वेनिस आ चुकी थीं. उन्होनें मुझे तसल्ली से आकर्षक शहर के बारे में इतिहास व
टुरिस्ट प्लेस के बारे में जानकारी दी. वेनिस उसका पसंदीदा शहर था. उसके अनुसार इसको जी भरकर घुमने व समझने के लिये कम से कम एक सप्ताह का समय तो होना चाहिये. पर मेरे पास इतना समय नहीं था. 

रात तीन बजे मुझे "मेस्त्रे" स्टेशन पर उतरकर ट्रेन बदलना थी. अतः मैं मोबाईल में पौने तीन बजे का आलार्म लगा कर सो गया. जैसे ही आलार्म बजा तत्काल गेट के पास खडा हो गया, क्योंकि ट्रेन मात्र दो मिनट ही रुकती थी. मैं तो निर्धारित समय पर ट्रेन जहां रुकी वहीं उतर गया, क्योंकि युरोपियन ट्रेन लगभग सही समय पर चलती हैं. अगर मैं हिन्दुस्तान में होता तो उतरने से पहले दो बार तहकीकात करना पडती कि सही जगह तो उतर रहा हुं, क्योंकि हमारे यहां टाईम देखकर ट्रेन से नहीं उतरा जा सकता. 

हालांकी मुझे टिकट चेकर भी उठाने आ गया था. उसनें मुझे बताया कि यह मेस्त्रे स्टेशन इटली की मुख्य भुमी पर स्थित है. यहां से यह रेल्वे लाईन रोम की तरफ चली जाती है. वेनिस जाने के लिये ट्रेन बदलकर समुद्र पर बने पुल पर से होकर जाना होता है. यहां मेरे साथ ट्रेन से बहुत कम सवारियां उतरी थी. 

वेनिस का रेलवे स्टेशन यहां से मात्र आठ किलोमीटर ही दुर था, पर वहां जाने के लिये पहली ट्रेन दो घंटे बाद सुबह के पांच बजे थी. अब मेरे पास दो तरीके थे कि या तो मैं ट्रेन का इन्तजार करता या फिर बस से चला जाता. स्टेशन से बाहर निकलकर मैनें जानकारी ली तो पता चला कि वेनिस के लिये पहली बस चार बजे बाद से मिलनी शुरु होती है. हालांकी वेनिस में बस स्टेशन व रेल्वे स्टेशन दोनों नजदीक ही हैं, किन्तु दोनों अलग अलग टापू पर हैं. पर मुझे ठहरना तो रेल्वे स्टेशन के पास ही था, अतः मैनें ट्रेन से ही जाना उचित समझा. 

अब मैं एक कुर्सी पर बैठकर उंघने लगा, कि थोडी देर बाद एक ओर ट्रेन की सवारियां आ गयीं और स्टेशन पर
चहल पहल बढ गयीं. ये सभी यात्री वेनिस जाने वाले थे. हमारी ट्रेन ठीक समय पर चली व मात्र दस मिनट बाद ही वेनिस आ गया. गर्मियों में सुबह जल्दी हो जाती है. अतः अधजली लाईटों में वेनिस खुबसुरत लग रहा था. इन दोनों रेल्वे स्टेशनों के मध्य समुद्र पर एक बहुत लम्बा पुल बना हुआ है, हालांकी यह सब लेगुन क्षेत्र में है अतः पानी ज्यादा गहरा नहीं है, पर चारों तरफ विशाल समुद्र तो है ही. 

वेनिस के रेल्वे स्टेशन "सांता लुचिया" से बाहर निकलते ही ऐसा लगा जैसे यहां समय ठहर चुका है व मैं सोलहवीं शताब्दी में पहुंच गया हुं. सामने बह रही थी ग्रेंड केनाल व उस पर खडी ढेर सारी नावें. नहर के उस पार
ऐतिहासिक महलनुमा मकान, चर्च, स्कुल, म्युजियम व होटल इत्यादी शान से खडे थे,, जो सुबह के समय को बेहद आकर्षक बना रहे थे. एक बारगी मुझे यह एहसास हुआ कि, जैसे हमारे हिन्दुस्तान में बाढ आ जाने पर सडकों पर पानी भर आता है, तब आवागमन के लिये नाव का उपयोग किया जाता है. ठीक उसी प्रकार से वेनिस की सडकों पर स्थायी रुप से पानी भरा हुआ है, जिन्हें अब नहर के नाम से पुकारा जाता हैं.       

मैं पैदल चलकर नजदीक ही में बायीं तरफ पहली गली में स्थित अपने होटल पहुंचा. वह बिल्डिंग भी दो सौ साल से ज्यादा पुराना दिखी, पर साफ सफाई व रंग रोगन अच्छा होने से मजबुत दिख रही थी. वैसे तो वेनिस के अधिकांश मकान मुझे तो पुराने ही दिखे. होटल का गेट खुला था व एक आदमी साफ सफाई कर रहा था. उसे मेरे
आने के बारे में पता था, उसनें मुझसे बेन्वेनुतो सिन्योरे (स्वागत श्रीमान) कह कर व चाभी दे दी. मैं तीन बजे से जगा होने के कारण थका हुआ था, अपने रुम में जाकर दो घंटे सोया. फिर तैयार होकर नीचे आ गया. 

होटल का मेनेजर काउंटर पर ही मिला. उसने मुझसे कहा बुन्जोर्नो (शुभ प्रभात) बोला व निवेदन किया कि पहले आप नाश्ता कर लें. भुख तो लग ही रही थी. एक टेबल पर अनेको तरह के व्यंजन, फ्रुट, ज्युस, केक, दुध - ब्रेड जैसे अनेकों खाने पीने के सामान रखे थे. उनमें से शाकाहारी खाद्य पदार्थ निकालकर भरपेट नाश्ता किया. युरोप में अधिकांश होटलों में सुबह का नाश्ता निःशुल्क ही मिलता है. 

वेनिस बहुत महंगा शहर है. युरोप में स्विट्जरलैंड को सबसे महंगा देश माना जाता है, किन्तु मुझे तो वेनिस की होटलों का किराया उससे भी ज्यादा महंगा लगा. यहां के होटल, अन्य युरोपीय देशों के मुकाबले में 2 - 3 गुने
ज्यादा महंगा हैं. कारण इस छोटे से शहर में प्रतिदिन दुनिया भर से पचास हजार से अधिक सैलानी आते हैं.  वैसे भी युरोप या यों कहें कि दुनिया के अधिकांश टुरिस्ट प्लेस पर होटल का किराया सप्ताहांत या किसी त्योहारों के अवसर साधारण दिनों के मुकाबले में ज्यादा ही लगता है. 

नाश्ते करने के बाद मैनें मेनेजर से पुछा कि वेनिस घुमने की शुरुआत कैसे करुं, तो उसनें कहा कि सामने ग्रेंड केनाल से वाटर बस का पुरे दिन का टिकट ले लो. रुट व टुरिस्ट स्पाट की जानकारी के लिये वहीं रेल्वे स्टेशन में एक पर्यटक केन्द्र है वहां मिल लो. मैनें यही किया. वहां बैठी आफिसर नें मुझे एक मेप देकर रंगीन पेंसील से मार्किंग कर बहुत अच्छे से समझाया कि आप वाटर
बस का पुरे दिन का पास ले लें. फिर इस मेप में बताये स्थानों पर पहुंच जायें. आसान ही था, क्योंकि पुरे शहर में कहीं भी जाने के लिये एक मात्र मुख्य मार्ग यह ग्रेंड केनाल नामक नहर ही है. इसी के एक किनारे पर स्थित है, सांता लुचिया रेल्वे स्टेशन व बस स्टेंड जो वेनिस का प्रवेश द्वार हैं. इसी प्रकार नहर के दुसरे किनारे पर है, सान मार्को स्क्वेयर जिसके आसपास वेनिस के अधिकांश ऐतिहासिक महत्व के स्थल है.    

बाहर निकलकर मैनें वाटर बस जिसे इटेलियन में वेपोरेत्तो कहते हैं का 36 घंटे का ट्रेवल पास 25 युरो में लिया. अब इससे पुरे वेनिस में कहीं भी, कितनी भी बार आया जाया जा सकता है.  इसके अलावा मैनें के एक वेनिस कार्ड भी खरीदा जिससे मुझे नगर के कई म्युजियम व चर्च में प्रवेश की सुविधा हासिल हो गयी. 

अब सबसे पहले मैनें सामने जो पहली वेपोरेत्तो मिली उसमें बैठ कर पुरे वेनिस का एक चक्कर लगाया ताकी मोटे तौर पर मैं शहर को समझ सकुं. पुरा वेनिस शहर ही इस सर्पाकार ग्रांड केनाल के आसपास ही बसा हुआ है, व यही इस शहर की जीवनरेखा है. एड्रियाटीक सागर के लेगुन में बनी इस चार किलोमीटर लम्बी नहर की चौडाई सौ से तीन सौ फीट तक व औसत गहराई 16 फीट है. वैसे यह एक चौडी नदी का ही आभास देती है. इसके दोनों किनारों पर वेनेशियन शैली के भव्य मकान, चर्च इत्यादी बने हुए हैं, जो तेरहवीं से अठारहवीं शताब्दीं के दौरान वेनिस के रईस परिवारों द्वारा बनाये गये थे. इनमें से अधिकांश व्यापारी थे जो पुरब के देशों से सामान लाकर युरोप में बेचते थे.

जब पास-पास बसे इन छोटे से द्वीपों पर मकान बनते गये व इनके मध्य में भरे पानी नें नहरों का स्वरुप ले लिया, तब वेनिस शहर का निर्माण करने वाले इन 118 द्वीपों को जोडने वाली 170 नहरों नें आपस में मिलकर
एक संजाल बनाया जो अंत में आकर ग्रेंड केनाल में मिल जाती हैं. शहर का निर्माण करने वाले इन तमाम द्वीपों पर पैदल आवागमन के लिये इन नहरों पर 400 से अधिक पुल बने हुए हैं. हमें यह अहसास नहीं होता है कि हम एक द्वीप से किसी दुसरे द्वीप पर जा रहे हैं, क्योंकि वे आपस में सटे हुए हैं, व मात्र एक छोटी सी नहर ही उनके बीच में विभाजन रेखा का काम करती है. अब इन द्वीपों की प्रत्येक ईंच जमीन पर निर्माण हो चुका है, यहां तक की कई जगह समुद्र को भी भरकर उस पर भी निर्माण कर दिया गया है. अतः अब हमें यह आभास होता है कि वास्तुकारों नें इस अद्वितीय शहर का निर्माण इस प्रकार किया कि यहां की सडकों में समुद्र का पानी भरकर उन्हें नहरों का स्वरुप दे दिया गया हो, ताकी इन पानी भरी सडकों पर आवागमन के लिये नावों का उपयोग किया जा सके. 

वेनिस को जब मैनें फोटो में या फिल्मों में देखा था, तबसे इसकी खुबसुरती का कायल हुं. पर हकीकत में जब
मैनें इसे देखा तो पाया कि, यह अद्भुत शहर फिल्मों में जैसा दिखता है उससे भी अधिक सुंदर है. वेनिस का फिल्मों से पुराना नाता रहा है. यहां का 70 साल पुराना फिल्म फेस्टीवल, आज भी दुनिया का सबसे पुराना व प्रतिष्ठीत इन्टरनेशनल फिल्म फेस्टीवल है, जो प्रतिवर्ष अगस्त के अंतीम सप्ताह में मनाया जाता है. जिसमें दुनिया भर के फिल्म निर्माता अपनी फिल्मों के प्रदर्शन मात्र होने पर ही अपने नसीब को सराहते हैं. 

यह लाजवाब शहर हालीवुड के अलावा दुनिया की अनेकों भाषाओं की कई फिल्मों की शुटींग की पसंदीदा लोकेशन रहा है. यहां जेम्स बांड की मुनरेकर, फ्राम रशिया विद लव, केसिनो रोयाल के अलावा स्टीवन स्पीलबर्ग की इण्डीयाना जोन्स एन्ड द लास्ट क्रुसाड के अलावा डेन्जरस ब्युटी, डोन्ट लुक नाउ, डेथ इन वेनिस, द कम्फर्ट आफ स्ट्रेन्जर्स, द विंग्स आफ डोव जैसी हालीवुड की कई प्रसिद्ध फिल्मों की शुटींग हुई है. 

फिल्मों की बात निकले व बालीवुड का चर्चा ना हो, यह संभव नहीं है. मुझे याद आया अमिताभ बच्चन व जीनत
अमान की एक फिल्म द ग्रेट गेम्बलर का एक मधुर गीत, "दो लफ्जों की है, दिल की  कहानी....". जिसकी शुटींग वेनिस में ही हुई थी. इसमें गोंडोला नाविक इस गीत की शुरुआत "ओ मोरे मियो..." धुन गुनगुनाते हुए करता है. इस मधुर गीत को आप भी यु-ट्युब पर सुनने के साथ ही वेनिस की खुबसुरती को भी निहार सकते हैं. 

गोंडोला एक चपटे तले वाली लगभग 11 मीटर लम्बी नाव होती है, जो वेनेशियन लेगुन के उथले पानी के लिये उपयुक्त होती हैं. गोंडोला चलाने वाले नाविक को स्थानीय भाषा में गोंडोलियर कहते हैं. चालीस मिनट की एक
गोंडोला यात्रा के लिये 80 युरो देने होते है, जबकी रात के समय इसका शुल्क ज्यादा होता जाता हैं. इसकी सवारी बहुत महंगी होती है, इसलिये हम गोंडोला नाव की तुलना एक लिमोजीन जैसी लक्जरी कार टेक्सी से कर सकते हैं, क्योंकि मेरी न्युयार्क यात्रा के दौरान मेरे एक परिचीत नें मुझे मेनहट्टन इलाके में लिमोजीन कार से भ्रमण कराया था व उस टेक्सी का किराया लगभग वेनिस के गोंडोला जितना ही अदा किया था. 

गोंडोलियर काली पेंट, काले जुते, स्ट्रीप वाली टी-शर्ट उस पर एक सफेद शर्ट, व हेट भी पहनते हैं. जरुरी नहीं है कि वे गाना गायें. पर अगर इटेलियन भाषा के गीत सुनने के इच्छुक हैं तो आप पुछ सकते हैं. सुनते हैं कि आज से लगभग पांच सो वर्षों पुर्व यहां तकरीबन दस हजार गोंडोला थे, लेकिन अब पांच सो से अधिक नहीं होंगें, कारण अब जनता आवगमन के लिये सस्ती वाटर बस "वेपोरत्तो" का उपयोग करती है. पर वेपोरत्तो सिर्फ चौडी नहर में ही जाती है, जबकी गोंडोला संकरी नहरों में भी जा सकती है. 

मुझे वेनिस में कोई रिक्षा, कार या मोटर सायकिल नहीं दिखी. हर तरफ सिर्फ नावें ही नावें. हां कुछ शौकिया
लोग सायकिल जरुर चलाते हैं, उसमें भी अगर किसी दुसरे टापु पर जाना हो तो पुल पर बनी सीढीयों पर से सायकल हाथ में उठाकर पार करना मुश्किल ही होता है.  वेनिस में कारों का प्रवेश निषेध है. सडक मार्ग से आने वालों के लिये नगर के प्रवेश पर ही एक विशाल कार पार्कींग बनी हुई है. यह कार पार्कींग युरोप की सबसे विशाल ही नहीं अपितु सबसे महंगा भी है. यहां कार पार करने पर 24 घंटों के लिये 30 युरो देने पड्ते हैं. इस रकम में तो युरोप के कई देशों में इकानामी क्लास की होटलों में एक कमरा किराये पर मिल जा्ता है. हालांकी कई अनुभवी सैलानी अपनी कार को मुख्य भुमी पर बसे शहर मेस्त्रे में ही पार्क करना पसंद करते हैं, क्योंकि वह वेनिस से सस्ता पडता है. 

वेनिस के बारे में यह नहीं कहा जा सकता है कि यह नगर कब बसा, किन्तु अंदाजा यह है आज से करीब तीन हजार साल पहले वेनीटी लोगों नें जब एड्रीयाटीक सागर के किनारे देखा कि यहां समुद्र का पानी ज्यादा गहरा
नहीं हैं. तो उन्होनें यहां आकर बसना शुरु किया. हालांकी तब लम्बे समय तक यहां सिर्फ मछुआरों व नाविकों की बस्ती ही रहीं. बहुत बाद में लोम्बार्ड, हुण व जर्मेनीक जाती के लोगों के आक्रमणों से बचने के लिये रोमन जनता नें अपनी सुरक्षा के लिये यहां के उथले पानी वाले लेगुन के टापुओं पर बसना शुरु कर दिया था. फिर बाद में हुए आबादी के विस्तार के कारण इस टापुओं नें एक नगर का स्वरुप ले लिया. सन 421 में यहां एक क्रिश्चियन चर्च "सान जियाकामो" भी बन गया था. इसलिये इसी दौरान वेनिस का निर्माण होना माना जाता है. 

रोमन साम्राज्य के सन 476 में पतन के बाद वेनिस पर बायजेंटाइन शासकों का शासन रहा. जो कोन्स्टेन्टिनोपल (वर्तमान इस्तन्बुल) से बैठकर यहां पर शासन करते थे. किन्तु वेनिस सन 810 में स्वतन्त्र हो गया. यहां के नागरिकों नें उर्सुस (ओर्सो ल्पाटो) को अपना पहला नेता चुना. जिसे बायजेंटाइन शासकों नें भी
मान्यता दे दी. वह वेनिस का पहला चुना गया डाज या ड्युक था. बाद में वेनिस का शासन आटोक्रेटिक पद्धती से होने लगा जो लोकतन्त्र का ही एक स्वरुप था, जिसमें डाज की ताकत सीमित कर दी गयीं और एक 480 सदस्यों वाली कोंसील का उस पर कंट्रोल रहता था. डाज की मदद के लिये कुछ मन्त्री भी रहते थे. इस प्रकार रिपब्लिक आफ वेनिस का निर्माण हुआ. इस प्रकार आगामी एक हजार वर्षों तक यह छोटा सा लोकतंत्र अस्तित्व में रहा.  फिर सन 1797 में वेनिस पर फ्रांसीसी शासक नेपोलियन बोनपार्ट के कब्जे के साथ ही रिप्लब्लीक आफ वेनिस का पतन हो गया. फिर नेपोलियन के वाटरलू में हारने के बाद वेनिस पर आस्ट्रियन लोगों नें शासन किया. अंततः सन 1866 में यह इटली में शामिल हो गया. 

यह छोटा सा देश मध्य युग व पुनर्जागरण काल के दौरान एक महत्वपुर्ण नौसेनिक ताकत हुआ करता था.
इसके अलावा किसी जमाने में यह सिल्क, मसालों व अनाज के व्यापार का एक बहुत बडा केन्द्र भी हुआ करता था. इससे वेनिस एक सम्रद्धशाली शहर बन गया. कभी इस छोटे से वेनिस के पास 3300 से अधिक युद्धक व व्यापारिक जहाजों का बेडा हुआ करता था, जिन पर 36,000 से अधिक कर्मचारी सवार होकर दुनिया भर की सैर किया करते थे. वेनिस का इतिहास युद्धों से भरा पडा है. कभी इसका क्रिश्चियनों व मुस्लिमों के मध्य हुए धर्मयुद्धों (क्रुसाड) में भी महत्वपुर्ण स्थान रहा है.   

वेनिस 13 से 17 शताब्दी में आर्ट का एक बहुत बडा केन्द्र बन चुका था. जिसका अनुभव हमें असर यहां के प्रत्येक भवन की वास्तुकला को देखने पर होता है. खुबसुरत मुर्तियां व पेंटींग्स हमें सारे शहर में बने इस खुबसुरत मकानों में दिखलाई देती हैं. म्युजिक के क्षेत्र में भी इसका बडा नाम हुआ करता था. यह मार्को पोलो व एन्टोनियो विवाल्डी की भी जन्म स्थली रहा है.  

वेनिस क्या अद्भुत शहर है, जहां के नागरिकों को अगर अपने पडोसी के घर भी जाना हो तो नाव का उपयोग
करना पड सकता है. हालांकी सभी जगह यह स्थिती नहीं है, क्योंकि इस द्वीपों के अंदरुनी हिस्सो में गलियां तो बहुत हैं, मगर अधिकांश संकरी हैं. 

वेनिस की खुबसुरती उसके ऐतिहासिक मकानों, नहरों, पुलों, महलों, चर्चों, नावों, पेड - पौधों, पत्थ्ररों वाली संकरी सी गलियों सहित हर चीज में हैं. पुरे शहर में आप जहां कहीं भी नजर दौडाओ, उसकी खुबसुरती से अभिभुत हुए बिना नहीं रह पाओगे. यहां तक की बेहद पुराने प्लास्टर उखडे हुए मकानों में से झांकती हुई ईटें, उनकी खिडकियों में लगे फुलों के गमले व उनके नीचे नहरों में बहता पानी भी वेनिस की खुबसुरती को बढाती है. इसी कारण से यह पुरा शहर ही अपने लेगुन के साथ 1987 में युनेस्को की वर्ल्ड हेरीटेज साईट्स में शामिल किया गया है. नहरों के अद्भुत संजाल से सजे इस खुबसुरत शहर का नजारा आप भी घर बैठे गुगल अर्थ के माध्यम से ले सकते हैं.   

जुलियस सीजर के समय प्राचीन रोमन सभ्यता अपने उत्कर्ष पर थी जिसके कारण रोम, फ्लोरेंस, पीजा, मिलान, पोम्पेई, नेपल्स, वेरोना, तुरीन, जेनोवा जैसे शहरों में रोमन सभ्यता की भव्यता के अवशेष देखने को मिलते हैं. वेनिस का निर्माण रोमन सभ्यता के पतन के बाद हुआ था, अतः समय के साथ वेनेशियन कला में ओर भी निखार आता चला गया.  

सबसे पहले मैने वेपेरोत्तो में बैठ कर वेनिस का एक चक्कर लगा कर भव्य नजारा देखने की कोशिश की. मैं सबसे पहले रेल्वे स्टेशन से ग्रेंड केनाल से होते हुए सान मार्को स्क्वेयर तक पहुंचा. फिर वहां उतरकर अगली वाटर बस से दक्षिण दिशा में बने हुए बहुत चौडे जलमार्ग से होते हुए रेल्वे स्टेशन पहुंचा. इस मार्ग के दोनों किनारों पर भी कई ऐतिहासिक महत्व के भवन बने हुए हैं. इसी मार्ग में स्थित पोर्ट आफ वेनिस पर मैनें दुनिया भर से आये स्टार क्रुज जैसे बडे यात्री जहाजों को भी खडे देखा. इस प्रकार लगभग एक घंटे में मै वेनिस का एक गोल चक्कर लगाकर फिर से रेल्वे स्टेशन पहुंच गया. 

मैनें पाया कि वेनिस में अधिकांश देखने लायक स्थल सान मार्को स्क्वेयर के आसपास ही हैं. अतः मै दोबारा
वाटर बस से सान मार्को चौक जा पहुंचा. यहां पुरी दुनिया से आये हजारों पर्यटकों का मेला लगा हुआ था. कभी इस खुबसुरत चौक को देखकर नेपोलियन अभिभुत हो गया व उसने कहा था, कि यह तो युरोप का ड्राईंग रुम है. यहां हजारों की तादाद में कबुतर स्वछंदता से उडते हुए यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि, यह जगह हमारी है. पहले पर्यटक इन कबुतरों को चना चबेना खिला दिया करते थे. लेकिन इनकी बढती तादाद अब शहर के लिये समस्या बनती जा रही है, अतः कबुतरों को खिलाने पर अब प्रतिबंध लगा दिया गया है.  

इस भव्य व विशाल चौक को नवीं शताब्दी में सेंट मार्क बेसेलीका व डाज पेलेस के बाहर स्थित एक नहर के पार बनाया गया था. लेकिन सन 1974 में इस नहर में मिट्टी भरकर चौक को और भी विशाल आकार दे दिया गया. पिछले हजार से भी अधिक वर्षों से यह स्थान वेनिस के निवासीयों की राजनैतिक, सामाजिक व सांस्कृतीक गतिविधियों का मुख्य केन्द्र रहा है. पुरे वेनिस में सिर्फ इसी चौक के लिये पियाज्जा शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, बाकी सबको केम्पी कहा जाता है.   

इस चौक पर स्थित सबसे मुख्य भवन है, सेंट मार्क चर्च (इटेलियन में सान मार्को बेसिलीका), जो वेनिस का सबसे भव्य चर्च है. यह इटेलियन - बायजेंटाईन वास्तुशिपकला एक उत्कृष्ट उदाहरण है. इसकी खुबसुरत वास्तुकला व सोने की कारीगरी की हुई अस्सी हजार वर्ग फीट से ज्यादा मोजेक पेंटींग्स व टाइल्स के कारण इसे चर्च आफ गोल्ड भी कहते हैं, जो पुराने वेनिस की ताकत व सम्रूद्धी का प्रतीक है. 

यह चर्च सन 828 में तत्कालिन ड्युक ने बनाया था. कुछ वर्षों पश्चात आग से जलने के बाद इसका पुनर्निर्माण
हुआ. फिर आगामी कई शताब्दियों तक इसमें कुछ ना कुछ निर्माण होता रहा, जिसके कारण यह और भव्य होता चला गया. ड्युक के महल के पास स्थित होने के कारण इसके इसका विशेष महत्व रहा है. यह जितना खुबसुरत बाहर से दिखता है, उससे भी ज्यादा अंदर से है. 

इस चर्च के बाहर की दीवारों पर द लास्ट जजमेंट जैसी कुछ भव्य मोजेक पेंटींग्स बनी हुई हैं. इसमें पिछली सदियों के कई महान कलाकारों नें सेंट मार्क के जीवन के साथ ही व ओल्ड व न्यु टेस्टामेंट (बाईबिल) की कहानियों का सचित्र वर्णन किया है. यह कहा जाता है कि वेनिस के व्यापारियों के जहाज जब सारी दुनिया में व्यापार के लिये जाते थे, तब वे लौटते समय चर्च के लिये कुछ ना कुछ सामान जरुर लाते थे. इसी कारण इसकी समृद्धी मे लगातार इजाफा होने के साथ ही यह प्रतिवर्ष और अधिक आकर्षक होता चला गया. यहां दुनिया भर के कई देशों से लाये हुए उन अभुतपुर्व वस्तुओं को प्रदर्शित भी किया गया है.   

इस चर्च के मुख्य द्वार के उपर झरोखों में चार खुबसुरत कांसे के घोडों की मुर्तियां जिन्हें सान मार्को के घोडे कहा जाता है, रखी हुई हैं. कहा जाता है कि इनको ग्रीक मुर्तीकार लिसीप्पोस नें आज से लगभग 2400 साल पहले बनाया थे. ये कभी चीयोस द्वीप पर खडे हुए थे, जिन्हें बाद में वहां से आठवीं शताब्दी में इस्तन्बुल के हिप्पोड्रोम की शान बढाने के लिये लाया गया. किन्तु सन 1204 में चौथे धर्मयुद्ध के बाद वेनेशियन सेना इन्हें इस्तन्बुल से वेनिस ले आई थी. जिन्हें इस सान मार्को बेसिलीका मे लगाया गया. फिर 1797 में नेपोलियन नें वेनिस पर कब्जा किया तो उसनें इन्हें जबर्जस्ती पेरिस पहुंचा दिया. किन्तु वाटरलू में नेपोलियन के हारने के बाद इन्हें फिर से वेनिस लाया गया. लेकिन सन 1980 में इन चारों घोडों को मौसम की मार से बचाने के लिये टेरेस से हटाकर चर्च के अंदर रख दिया गया, व उनकी जगह हुबहु नकल तैयार कर रख दी गयी.

इसी सान मार्क पियाज्जा पर चर्च दाहिने ओर व ग्रेंड केनाल के किनारे डाज पेलेस (प्लाज्जो डुचाले) स्थित है.
जो पिछले हजार से भी अधिक वर्षों से रिपब्लीक आफ वेनिस के सर्वो्च्च पद डाज या ड्युक का निवास स्थान रहा है. यह एक वेनेशियन गोथिक स्टाईल में बना भव्य राजमहल है. किसी जमाने में यह वेनिस का सबसे महत्वपुर्ण स्थल हुआ करता था, जो सदियों से वेनिस की ताकत का प्रतीक रहने के अलावा तमाम राजनीतिक घटनाक्रमों का गवाह रहा है. 

वेनिस के बायजेंटाइन शासन से सन 810 में अलग होने के बाद के तत्कालिन ड्युक नें यहां अपना महल बनाया था जो बाद में जल गया था. जिसका बाद में कई बार पुनर्निर्माण किया गया. यह महल तीन भागों में बना हुआ है, जो अलग अलग समय में बनाये गये थे. जिनमें निवास, जेल, शस्त्रागार, दरबार इत्यादी बने हुए हैं. अंत में इस भव्य महल को प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1923 में म्युजियम में तब्दील कर दिया गया, व अधिकांश जगहों
को सैलानियों के लिये खोल दिया गया है. इस पेलेस में अकसर दुनिया भर के कलाकारों की आर्ट एक्जीबिशन भी लगती रहती है. मैंनें वहां दुनिया भर के नाविकों द्वारा हाथ से बनाये हुए पुराने समुद्री मार्गों के नक्षों की प्रदर्शनी लगी हुई देखी. ये नक्षे 14 से 18 शताब्दी में बनाये हुए थे.   

चर्च के बायीं ओर पुनर्जागरण काल के दौरान सन 1496 में बना एक खुबसुरत घंटाघर का पांच मंजीला भवन है जिसे सेंट मार्क्स क्लाक टावर (टोर्रे डेल ओर्लोगियो) कहते हैं. इसकी दुसरी मंजील पर लगी नीले रंग के डायल वाली धातु में बनी इस खुबसुरत घडी पर बारह राशियों के साथ ही व आसमान, चांद व सितारों को भी दिखलाया गया है. इसके उपर वाली तीसरी मंजील पर वर्जीन मेरी व उसके बेटे की मुर्तीयां लगी है. फिर चौथी मंजील पर वेनिस के रक्षक लायन आफ वेनिस जो एक पंख वाला शेर है, कि मुर्ती खडी है. अंत में इस पांच मंजीला भवन की छत पर कांसे के बने हुए एक विशाल घंटे के पास दो आदमीयों के पुतले खडे हैं. इस चौक में बने अनेकों भवनों में यह क्लाक टावर सैलानियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षीत कर ही लेता है. 

इसी चौक पर खडा 323 फीट उंचा एक बेल टावर (केम्पानील) खडा है, जो यहां की सबसे उंची इमारत है, जो
कभी चर्च की घंटीया बजाने के काम आता था. इसी प्रकार चौक में दो खुबसुरत कालम भी खडे हैं. जिनमें पहले पर लायन आफ वेनिस की मुर्ती व दुसरे पर हाथ में भाला लिये संत सेंट थियोडोर खडे हैं.  

यहीं डाज पेलेस के पीछे जेल से लगा हुआ एक पुल जिसका नाम ब्रीज आफ सायस (पोन्टे दी सोसपीरी) है, जो पेलेस रिवर पर खडा है. इसका उपयोग कैदीयों को सजा पाने के बाद जेल में ले जाने के लिये किया जाता था. इस छोटे मगर खुबसुरत ब्रीज की डिजाइन सतरहवीं शताब्दी में एन्टोनियो कोन्टीनो नें बनाई थी. सफेद लाईम स्टोन का बना यह ब्रीज पुरी तरह से ढका हुआ है व इसमें दो जालीदार खिडकीयां बनी हुई है. इस पर एक मुस्कुराता हुआ चेहरे की मुर्ती लगी है.  

इस प्रसिद्ध का यह नाम पडने के पीछे भी एक कहानी है, कि जब कैदी यहां से जेल की ओर जाते थे तो इसमें से वे
अंतीम बार आकर्षक वेनिस के सौन्दर्य का नजारा देख पाते थे, और वे ठंडी सांसें (sigh)  भरते थे. जिस कारण इसका नाम भी ब्रीज आफ सायस हो गया. इसके अलावा एक और मान्यता है कि यदि सुर्यास्त के समय इस ब्रीज के नीचे नहर से गोंडोला से जाते हुए यदि कोई जोडा चुंबन लेता है तो उनका प्यार लम्बे समय तक बना रहता है. 

यहीं डाज पेलेस से आर्सेनाल डी वेनेजिया तक ग्रेंड केनाल के किनारे पटरीयों पर पन्दरहवीं शताब्दी पुराना रिवा डेगली शिआवोनी नामक एक लम्बा बाजार लगता है,  जिसमें खाने पीने के सामान के अलावा, सस्ते कपडे जैसे टी-शर्ट आईल पेंटींगस, मुर्तियां व कई प्रकार के सोवेनियर गिफ्ट आयटम मिलते हैं. यहां सैलानियों की बहुत भीड होती है. यहां भाव ताव भी होता है.  यहीं पर घोडे पर सवार इटली के प्रथम राजा विटोरियो एम्मानुएल द्वितीय की बहुत बडी मुर्ती खडी है. यहीं अनेकों गोंडोला वाले भी खडे रहते हैं, जो सान मार्को सक्वेयर के नजदीक के क्षेत्र को संकरी सी नहरों से ले जाकर दिखलाते हैं.  

यहीं से थोडी दुरी पर स्थित है, सन 1320 में बना आर्सेनाल डी वेनेजिया, जो कभी जहाज बनाने का सेंटर था.
यहां कभी 16,000 से ज्यादा लोग काम करते थे. तब यह 32 हेक्टेयर में फैला हुआ था. लेकिन नेपोलियन के शासन के समय व फिर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसके कई हिस्सों को तोड दिया गया. हालांकी अब इस इलाके को इटेलियन आर्मी उपयोग में लाती है, व मात्र कुछ हिस्सों मे ही सैलानियों को जाने दिया जाता है. 

इसी प्रकार सेंट जकारिया चर्च (चिएसा डी सान जकारिया) जो सेंट मार्क चौक से लगा हुआ ही है, में टिन्टोरेट्टो, एन्जेलो ट्रेविसानी, गिउस्प्पे, साल्वियाती, एन्टोनियो, बालेस्ट्रा, गिओवान्नी, डोमेनिको, टिपोलो, पाल्मा द एल्डर व फान डाइक द्वारा बनाई गई कई भव्य कलाकृतीयों का संग्रह है. इनमें सबसे महशुर है बेल्लीनी द्वारा 1505 में बनाई गई, मेडोना विथ चाईल्ड एन्ड सेंटस. इस चर्च के बारे में एक सैलानी नें मुझे एक मजेदार तथ्य बताया कि, अठारहवीं शताब्दी में इस चर्च के कानवेंट में नगर के कई सम्पन्न घराने अपनी
बिगडैल बेटीयों को, उनकी इच्छा के विरुद्ध नन बनने के लिये भेज दिया करते देते थे. इस प्रकार उनका दहेज भी बच जाता था. लेकिन ये लडकियां अपने आपको नन बनने से बचाने के लिये अपने प्रेम के सच्चे झुठे किस्सों को पुरे नगर में खुद ही फैलाकर अपने परिवार से बदला ले लेती थीं. जिसे पुरे नगर में चटखारे लेकर सुना जाता था.    

सान मार्को स्क्वेयर के आसपास कई महत्वपुर्ण म्युजियम हैं, जिनमें मेरे द्वारा लिये गये वेनिस कार्ड से प्रवेश संभव था. पर मैं तो सिर्फ डाज पेलेस व कोरेर म्युजियम में ही जा पाया कारण बहुत लम्बी लाईन लगी थी. इसके अलावा इन सबको देखने के लिये मेरे पास समय नहीं था. 

वेनिस का एक और महत्वपुर्ण चर्च सेंट मेरी चर्च आफ हेल्थ (बेसेलीका डी सांता मारिया डेल्ला सेल्युट) सान
मार्को स्क्वेयर के सामने ग्रेंड केनाल के उस पार एक छोटे से टापु पर स्थित है. सन 1630 में वेनिस में भयानक प्लेग की बीमारी फैली जिसके कारण वेनिस की एक तिहाई जनता मारी गयी. तब नगर परिषद नें सेंट मेरी जो स्वास्थ्य की देवी भी हैं, के सन्मान में एक चर्च बनाने का प्रस्ताव रखा. जब प्लेग का उत्पात खत्म हो गया तब इस महत्वपुर्ण स्थान पर ग्रेंड केनाल के मुहाने पर नगर परिषद नें अपना वादा निभाते हुए इस चर्च को बनाया. इस भव्य चर्च में जोस डी कोर्टे नामक प्रसीद्ध कलाकार द्वारा बनाई गयी एक कलाकृती जिसमें स्वर्ग की देवी द्वारा प्लेग को निकालते हुए दिखाया गया है, बनी हुई है. इसमें टिन्टोरेट्टो व अन्य कई कलाकारों द्वारा बनाई गई पेंटींग्स व मुर्तीयां प्रदर्शीत की गयी है.    

इसी प्रकार ग्रेंड केनाल पर बना रियाल्टो ब्रिज (पोंटे डी रियाल्टो) वेनिस का एक बडा व महत्वपुर्ण पुल ही नहीं वरन एक दर्शनिय स्थल भी है. यह पर्यटकों द्वारा सबसे ज्यादा फोटो लिये जाने वाला स्थान है. यह सर्वप्रथम
1180 में लकडी से बना हुआ ब्रिज था जो, नावों की सहायता से खडा था. जिसका पुनर्निर्माण सन 1264 व 1310 में किया गया. एक बार शाही बारात के नौकाओं में निकल रहे प्रोसेशन को देखने के लिये आयी जनता के वजन को यह पुल सह नहीं पाया व टूट गया. तब अंत में सन 1591 में वर्तमान खुबसुरत पुल बनाया गया. तबरीबन तीन सो वर्षों तक यह एक मात्र पुल था, जिससे ग्रेंड केनाल को पैदल चल कर पार किया जा सकता था.

हालांकी आज ग्रेंड केनाल पर कुल 4 ब्रीज खडे हुए हैं. इनमें से दुसरा है एकाडेमिया ब्रिज जो इपोनेमस आर्ट गेलेरी के नजदीक खडा है.  बचे हुए दो ब्रिज तो यहां के रेल्वे स्टेशन सांता लुचिया के सामने ही हैं. इनमें से तीसरे ब्रिज का नाम है, पोन्टे डेल्गी स्काल्जी जो रेल्वे स्टेशन के बाहर बायीं तरफ खडा है. इसी प्रकार हाल ही में बना अत्याधुनिक स्टील व शीशे की डिजाईन वाला चौथा ब्रिज जिसे पोन्टे डेल्ला कोस्टीट्युजीओन कहते हैं. यह रेल्वे
स्टेशन के दाहिनी ओर बनाया गया है, जिसे पार करके सामने स्थित पियाज्ज्ले रोमा टापु पर जाया जा सकता है, जहां पर वेनिस का बस स्टेंड है. इसके आगे बसों का शहर में प्रवेश निषेध है. इस सात सो करोड रुपये की लागत वाले नये ब्रिज को प्रसिद्ध स्पेनिश आर्किटेक्ट सेंटीयागो कलात्रावा नें डिजाईन किया था, को लेकर शुरु में कई विवाद भी उठे, क्योंकि इस ऐतिहासिक नगर में यह अत्याधुनिक निर्माण अलग ही नजर आता है. 

इसके अलावा वेनिस में अनेको स्थान व भवन देखने लायक हैं, जिनमें से अधिकांश को तो वेपोरेत्तो से ग्रेंड केनाल से भ्रमण करते समय देखा जा सकता है. इनमें से एक है,  हाउस आफ गोल्ड (पलाज्जो सांता सोफिया), जो सन 1430 में बना था. इसका डिजाईन भी डाज पेलेस का डिजाइन बनाने वाले आर्कीटेक्ट गिवान्नी बान व
उसके बेटे बार्टोलोमियो नें ही बनाया था. इस वेनेशियल गोथीक स्टाइल में बने हुए भवन में सोने का भी काम हुआ है, अतः इसे हाउस आफ गोल्ड कहा जाता है. इसमें कई महशुर कलाकारों टीन्टोरेट्टो, टिटियन, कार्पाचीयो, टिपोलो, गीओर्गेने, फान आइक व फान डाइक की कलाकृतीया लगी हैं. आजकल इसे जनता के लिये खोल दिया गया है.   

वेनिस में पब्लीक टायलेट का उपयोग महंगा है, एक बार उपयोग के लिये 1.50 युरो तक देने पड सकते हैं, जो हमारे सवा सौ रुपयों के बराबर होते हैं. हालांकी म्युजियम में टायलेट सुविधा फ्री है, पर यह अलग बात है कि म्युजियम या चर्च में प्रवेश शुल्क देना होता है. इसी प्रकार केफे या रेस्टोरेंट में भी ग्राहकों के लिये बने टायलेट का उपयोग किया जा सकता है. वैसे युरोप के अधिकांश देशों में मैने पब्लिक टायलेट का उपयोग पैसे देकर ही कर पाने का रिवाज देखा है.  

किन्तु सान मार्को चौक के पास बने कई काफी हाउस में खाने पीने के अलावा कुर्सी पर बैठने का भी चार्ज देना पड सकता हैं, जिसका पता हमें बिल आने के बाद ही चलता है. हुआ यों कि मैं दोपहर में घुमते हुए थोडा थक चुका था, तो नहर के किनारे एक केफे के बाहर लगी कुर्सियों पर काफी पीने के लिये बैठ गया. तभी मेरे पास की टेबल पर बैठे दो सैलानी वेटर से बहस करने लगे. जब उनके वार्तालाप को गौर से सुना तो पता चला कि उन लोगों नें मेनु में एक काफी की कीमत 6 युरो देखी व दो का आर्डर दे दिया तो कुल 12 का बिल आना चाहिये
लेकिन वेटर उनके पास 32 युरो का बिल लेकर आया. कारण उन्होनें प्रत्येक व्यक्ती के दस युरो आर्केस्ट्रा सुनने व कुर्सी पर बैठने के भी चार्ज किये थे, जो मेनु कार्ड में कहीं इटेलियन भाषा में लिखे थे, जिसका अंदाजा आर्डर देते समय नहीं हो सकता था. अब झगडा तो हो नहीं सकता, थोडे बहुत नाराज हो लिये व उन्हें 32 युरो देना ही पडे. यह देखकर मैं तत्काल खडा हो गया व वेटर के मेरी सीट पर आने से पहले ही केफे छोडकर निकल गया.   

हालांकी वेनिस के कई रेस्टोरेंट में बैठकर खाने के लिये थोडा अधिक शुल्क देना पड सकता है. यहां के स्थानिय निवासी काउंटर से सामान लेकर खडे होकर ही खाना पसंद करते हैं. इसी प्रकार खाने का सामान भी कई जगह वजन से मिलता है, जिससे धोखा होने की संभावना है. मतलब मेनु कार्ड पर किसी वस्तु के आगे 5 युरो है, तो
इसका मतलब जरुरी नहीं है कि उस एक नग की कीमत 5 युरो है. हो सकता है रेस्टोरेंट वाला आपसे खाने के बाद आपको 15 युरो का बिल थमा दे. पुछने पर वह जवाब देगा कि, यह सामान तो 5 युरो प्रती सौ ग्राम के मान है व चुंकि इसका वजन तीन सौ ग्राम है, अतः आपको इसकी कीमत 15 युरो देना होगी. अनजाने देश में आप कोई बहस भी नहीं कर पायेंगे, यहां तक पुलिस भी उनका ही साथ देगी. अतः वेनिस में कोई भी सामान खरीदने से पहले थोडी सी सावाधानी रखने की जरुरत है, ताकी आपको कोई अतिरिक्त भुगतान नहीं देना पडे. 

चुंकी मुझे ट्रेन में उन प्रोफेसर साहिबा नें यह सब सावधानी रखने को कहा था इसलिये मैनें तो सुबह ही रेल्वे स्टेशन के सामने बस स्टेंड के नजदीक ही एक सुपर मार्केट से फ्रुट, योगर्ट, ज्युस, पेस्ट्री जैसे कुछ सामान खरीद कर अपने साथ एक कंधे पर टांगने वाले बेग में रख लिये थे, ताकी बाद में वेजेटीरियन खाना खोजने में समय
बरबाद नहीं करना पडे. इस मार्केट में वस्तुओं की कीमत उचित ही थी. यहां तक की पानी के बजाय मैनें ज्युस लेना ही उचीत समझा, कारण दोनों लगभग एक ही भाव थे. वैसे बीयर प्रेमियों के लिये एक खुश खबर है कि युरोप में वह पानी के ही भाव पर ही मिलती है.  

युरोप के सुपर मार्केटों में खरीददारी करते समय मुझे अकसर "अंधेर नगरी चौपट राजा ! टके सेर भाजी - टके से खाजा वाली !!" कहानी याद आ जाती है. कारण यहां पानी, ज्युस, कोकाकोला, बीयर, काफी, चाय, ब्रेड, पीज्जा जैसे कई खाद्य पदार्थ लगभग 2 युरो प्रती नग के हिसाब से मिलते हैं.     

शाम को सान मार्को स्क्वेयर से मैं अपनी होटल तक पैदल घुमते हुए आया. वहां की संकरी गलियों, अनेकों नहरों व पुलों की भुलभुलैया से गुजरते समय मुझे लगा कि मैं इक्कीसवीं शताब्दी नहीं वरन मध्ययुग में से
गुजर रहा हुं. हालांकी मेरे पास नक्षा था,  इसलिये मुझे अपनी होटल का रास्ता खोजने में बहुत दिक्कत नहीं हुई पर कई बार रास्ता पुछना भी पडा. शाम के समय यहां गलियों में स्ट्रीट लाईट बहुत कम रोशनी वाली दिखीं. पुछने पर पता चला कि ये वेनिस को रोमांटीक शहर बनाने के लिये रोशनी को मद्धिम रखकर ऐसा माहौल बनाया जाता है. रास्ते में नहरों के छोटे छोटे बाग बगीचे वेनिस की शोभा में चार चांद लगा रहे थे. 

इन संकरी गलियों में होटलों व रेस्टोरेंट की भरमार दिखी.  इसके अलावा यहां के बाजार में दुनिया के हर प्रसिद्ध ब्रांड के शोरुम यहां दिखे. सिवाय आटोमोबाईल्स के, कारण वेनिस में कार या मोटरसाईकिल बेचने ऐसा ही है, जैसे गंजों के शहर में कंघी बेचना.

होटल लौटने तक थक चुका था. गर्मी भी बहुत थी, पसीने से लथपथ हो चुका था, अतः जाते ही नहाया. फिर होटल वाले से हिन्दुस्तानी खाने के बारे में पता किया. उसनें बताया कि यहीं पास में ही एक भारतीय रेस्टोरेंट गणेश जी हैं. ढुंढते ढुंढाते मैं वहां पहुंच गया. एक वेज थाली की किमत 12 युरो थी, पर खाना अच्छा था.  वेटर नें
ही बताया कि यहां अन्य कई भारतीय रेस्टोरेंट और है, जैसे बुद्धा बार, आगरा इंडीया किचन, ढाबा कुजीन आफ इंडीया, बाम्बे इण्डीयन कुजीन, हरी करी, अकबर कुजीन आफ इण्डिया, पर रेल्वे स्टेशन से सबसे नजदीक यही है. 

वैसे भी इटली में खाने की क्या समस्या. अगर मुझे भारतीय रेस्टोरेंट नहीं मिलता तो मैं इटेलियन फुड खाने के लिये तैयार था.  आज इटेलियन खाना दुनिया का सबसे ज्यादा प्रसिद्ध खाना है. पीज्जा, पास्ता, स्पाघेट्टी, रीसोट्टो, कपाचीनो काफी, गेलाटो आइसक्रीम जैसे कुछ नाम अब एक आम हिन्दुस्तानी भी पहचानता है, हालांकी हमनें इस खाने को अपने स्वाद के अनुसार मसालेदार बना लिया है. वैसे अब इटालियन खाना दुनिया के अधिकांश देशो में आसानी से मिल जाता हैं. 

वेनिस में मच्छर की समस्या भी हैं. रात को होटल के कमरे में जब मुझे लगा की एक दो मच्छर घुस आये हैं तो, मैनें खिडकी बंद कर दी. तभी मेरा ध्यान गया कि वहां के मास्किटो रेपेलेंट लगा हुआ था. अगले दिन मैनें पुछा तो होटल के मेनेजर नें बताया कि पानी की बहुतायत होने के कारण गर्मियों में थोडीं बहुत मच्छरों की समस्या आ जाती है. हालांकी नगर प्रशासन इसकी रोकथाम की पुरी कोशिश करता है.  

अगले दिन मैं मुरानो द्वीप गया, वहां पहुंचने में वाटर बस से जाने में करीब एक घंटा लगा. यह पांच टापुओं का एक समुह है. यहां की ग्लास इण्डस्ट्रीज बहुत प्रसिद्ध है, इसे मुरानो या वेनेशियन ग्लास के नाम से दुनिया भर में जाना जाता है. यहां कांच के अनेकों डेकोरेटीव गिफ्ट आयटम बनते हैं. इसके अलावा यहां के बने मुरानो बीड्स जो कांच के मनके होते हैं भी विश्व प्रसिद्ध हैं, ये ज्वेलरी बनाने के काम आते हैं. यह टापु सन 1291 में आबाद हुआ जब ग्लास इण्ड्स्ट्रीज को मक्खियों की समस्या से निपटने के लिये पुराने वेनिस से यहां शिफ्ट किया गया. यह उध्योग लगभग वैसा ही है, जैसा हमारे यहां उत्तरप्रदेश का फिरोजाबाद का कांच उध्योग. जहां चुडियों सहित कांच के अनेकों सामान बनते है. हालांकी उसकी तुलना में मुरानो ग्लास के बने हुए गिफ्ट आर्टीकल्स खुबसुरत किन्तु महंगे थे. यहां का ग्लासवर्क म्युजियम दर्शनीय है, इसमें 4,000 से ज्यादा कांच के सामान प्रदर्शित किये गये हैं, जो पिछले कई सदियों से आज तक के बने हुए हैं. इसी द्वीप पर एक चर्च सान पीत्रो भी है, जिसमें महान पेंटर बेल्लिनी, टिन्टोरेट्टो, व डेल वेरोनेसे के बनाये हुए भित्तीचित्र हैं.  

फिर नजदीक ही में बुरानो द्वीप गया, जो अपनी हाथ की बनाई हुई लेस इण्ड्स्ट्रीज के लिये प्रसीद्ध है. यहां के
मकान रंग बिरंगे थें, जिसके कारण यह द्वीप एक अलग ही आकर्षण पैदा कर रहा था. ऐसा लग रहा था कि किसी रंग बनाने वाली कम्पनी नें अपने शेड कार्ड के सारे रंग इन मकानों पर लगा दिये हों. पिछली सोलहवीं शताब्दी से यहां की औरतें अपने घरों में हाथों से लेस बना कर बेचती हैं. ये लेस विश्व प्रसिद्ध है. यहां एक लेस म्युजियम भी है. इन्हीं के पास एक द्वीप टोर्चेल्लो भी है.  

इसके अलावा वेनिस में सेंट मार्क स्कुल, फोनिक्स थियेटर, मेडोन्ना डेल ओर्टो चर्च, सेंट जान एन्ड पाल चर्च, जेवीश घेट्टो, नवल हिस्ट्री म्युजियम, गोंडोला बोटयार्ड के अलावा कई अन्य देखने लायक जगह हैं जहां मैं नहीं जा पाया. जिन्हें मैनें भविष्य में देखना ही उचित समझा. इसके अलावा झटेरे द्विप पर भी कई आकर्षक भवन, चर्च व बाजार भी है. यहां के 12 किलोमीटर लम्बे लीडो द्वीप पर बहुत लम्बा रेतीला बीच है. यहां कई महंगे होटल हैं, व यहीं फिल्म फेस्टीवल भी होता है. वेनिस के इस एक मात्र द्वीप पर कार भी चलती हैं.  

मुझे होटल के मेनेजर रोबेत्तो नें मुझे बताया कि फरवरी या मार्च में मनाये जाना वाला वेनिस कार्निवाल विश्व प्रसिद्ध है, व उस दौरान यहां पैर रखने की भी जगह नहीं मिलती है. सभी होटलों के रेट बेहताशा बढ जाते हैं, क्योंकि दुनिया भर से तकरीबन तीस लाख लोग कार्निवाल में भाग लेने के लिये आते हैं. 

बताया जाता है कि सन 1162 में रिपब्लीक आफ वेनिस की एक युद्ध में विजय के बाद जनता यहां सान मार्को चौक में एकत्रीत होकर खुशी में डांस कर जश्न मनाने लगी. जो बाद में एक परम्परा बन गई, व प्रतिवर्ष नागरिक मुखौटे लगाकर अपनी खुशी का इजहार करने लगे. किन्तु सन 1797 में आस्ट्रीया के कब्जे के बाद यह कार्निवाल बंद ही करा दिया गया. एक लम्बे अंतराल के बाद सन 1979 में सरकार नें इस परम्परा को पुनर्जिवीत किया. इस कार्निवाल की मुख्य विशेषता इसके मुखौटे व रंग बिरंगी पौशाखें है. इसके अलावा अनेकों प्रोग्राम होते हैं. जिसमें सबसे खुबसुरत मुखौटे को पहनने वाले को इनाम भी दिया जाता है. वैसे तो यहां बाजार में सालभर मुखौटे बिकते भी हैं, जिन्हें सैलानी वेनिस की याद के रुप में खरीदकर ले जाते है.      

वेनिस से भारत का पहला परिचय मार्को पोलो के कारण हुआ था. मैनें तेरहवीं शताब्दी में जन्मे वेनिस निवासी
मार्को पोलो की आत्मकथा पढी थी. मार्को पोलो नें सतरह साल की उम्र में व्यापार के लिये वेनिस छोडा ओर अपने पिता व चाचा के साथ चीन तक की पैदल यात्रा की. वह पहला युरोपियन था जो प्रसिद्ध मंगोलियन शासक चंगेज खान के पोते कुबलाई खान के दरबार में उच्च पदाधिकारी के पद पर नियुक्त हुआ था. उसने खान का विश्वास अर्जित कर किया था. तब कुबलाई खान चीन की राजाधानी पेकींग (आजकल बीजिंग) से बैठ कर अपने विशाल साम्राज्य को संचालित करता था, जो मंगोलिया, चीन से लेकर सेंट्रल एशिया के पार युरोप के कई देशों में फैला हुआ था. मार्को पोलो नें चीनी राजदुत की हैसियत से कई देशों की यात्रा की. इसी दौरान वह भारत भी आया था. उसने अपने संसमरणों को लिपीबद्ध कर एक किताब का रुप दिया था. यह एक महत्वपुर्ण द्स्तावेज है जो तत्कालिन भारत, चीन के अलावा एशिया व युरोप के अन्य कई देशों के बारें में जानकारी देता है. 

इसी प्रकार साहित्य में वेनिस का एक ओर वर्णन विलीयम शेक्स्पियर नें 1596 में लिखे अपने प्रसिद्ध नाटक मर्चेंट आफ वेनिस में भी किया है.  

पर्यटकों की भरमार वाले इस शहर में सफाई तन्त्र मजबुत है, जिसके कारण सम्पुर्ण शहर व नहरें साफ ही दिखती हैं.  मुझे यह जानने की उत्सुकता हुई कि इन नहरों की साफ सफाई कैसे होती है. पुछा तो पता चला कि प्रतीदिन यहां ज्वार भाटा (टाईड या एक्वा अल्टा) के कारण आने वाली बाढ समुद का ताजा पानी लाती है व बदले में यहां का गंदा पानी अपने साथ समुद्र में खींच कर ले जाती है. जिसके कारण यहां की नहरों की अपने आप यहां की सफाई हो जाती है. 

यहां कई बार खतरनाक रुप से ज्वार भाटा आता है, जिसके कारण पुरे शहर में करीब दो - तीन फीट तक पानी बढ जाता है, जिसका असर यहां के जनजीवन पर भी पडता है. अभी हाल ही में जल स्तर इस कदर बढ गया कि वेनिस के अधिकांश मकानों - दुकानों में पानी घुस गया. यहां तक की सान मार्को चौक भी पुरा जलमग्न हो गया
था. बताते हैं कि सन 1966 में बाढ के कारण पांच फीट से अधिक पानी बढ गया था. 

युरोप में मैनें वेनिस जैसा ही एक और शहर एम्सटर्डम देखा जिसका पुराना हिस्सा भी नहरों के आसपास ही बसा हुआ है. मैं एम्स्टर्डम की नहरों के संजाल की खुबसुरती से बहुत प्रभावित हुआ था. पर जब बाद में वेनिस देखा तब लगा कि इन दोनों शहरों का कोई मुकाबला नहीं हो सकता, वेनिस अद्वितीय है. 

किन्तु वेनिस में जन्म लेने वाली नई पीढी अब इस आकर्षक शहर को छोडकर नजदीक ही लगे हुई मुख्य भुमी पर बसे मेस्त्रे शहर में रहना पसंद कर रही है, कारण
यहां जगह की कमी के कारण मकान बहुत महंगे हो गये हैं. यहां के अधिकांश मकान अब होटलों में तब्दील होने लगे हैं. इसके अलावा यहां के व्यापारी भी लालची हो चले हैं, जो सैलानियों को महंगे दामों पर सामान बेचना पसंद करते हैं, जिसका खामियाजा स्थानीय निवासियों को भी भुगतना पडता है. साथ ही पार्किंग की भी समस्या है, इस कारण वेनिस के नागरिक कार या मोटर सायकल नहीं खरीद सकते हैं. इस कारण ऐसा लगता है कि आने वाले समय में वेनिस सिर्फ होटलों, रेस्तराओं व सैलानियों का शहर बनकर रह जायेगा.

मुझे वेनिस एक ऐसा अविस्मरणीय शहर लगा, जहां की संकरी गलियों में खो जाने को मन करता है. अगर फिर कभी मौका मिला तो मैं निश्चित रुप से यहा दोबारा आना पसंद करुंगा.   


विनोद जैन
ई-मेल - vinodthetraveller@gmail.com

 


Vinod The Traveler

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