* प्राग – हजार मिनारों वाला शहर

“आप लोगों नें तो इन्हें हिंदुस्तान से भगा दिया, पर हमें परेशान करने के लिये ये यहां आ गये”.  यह सुनकर मैं
अवाक रह गया. हुआ यह कि मैं बर्लिन से आने वाली ट्रेन से प्राग के मुख्य रेल्वे स्टेशन पर उतरा. प्लेट्फार्म पर एक बुजुर्ग नें मुझे नजदीक ही में किफायती दरों पर होटल दिलाने का भरोसा दिलाया. स्टेशन के बाहर कुछ आदमी औरतो का झुंड खडा था, जिन्हें देखकर उन्होनें मुझसे उपरोक्त शब्द कहे.

आपनें जो कहा वह मैं समझ नहीं पा रहा हुं?. मेरे पुछने पर उन्होनें बतलाया कि सामनें खडे लोग रोमानी या जिप्सी कहलाते हैं. इनके पुर्वज सैकडों वर्ष पुर्व हिन्दुस्तान से युरोप आये थे. इनमें से अधिकांश अपराधिक कार्यों में संल्गन हैं. पुरे युरोप में इन्हें दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है. सामाजिक तौर पर इनकी कोई हैसियत नहीं है.  हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार अधिकांश चेक नागरिक, इन रोमानी लोगों को असभ्य व असामाजिक मानते हुए नफरत की दृष्टी से देखते हैं, व चाहते हैं कि इन्हें देश निकाला दे दिया जाये. 

चेक रिपब्लिक की राजधानी प्राग को स्थानीय भाषा में प्राहा कहते हैं.  यह तेरह लाख की आबादी वाला एक बेहद खुबसुरत शहर है. प्राचीन स्लाविक भाषा में प्राह् का मतलब होता है, वेगवान नदी. शहर के मध्य में से बहने वाली वल्टवा नदी के कारण इस शहर का यह नाम पडा. यह 430 किलोमीटर लम्बी इस देश की सबसे लम्बी नदी है. 

प्राग परीयों के देश के जादुई शहर जैसा लगता है. शहर के मध्य से गुजरती हुई हंसों से भरी तेज बहती हुई वल्टवा नदी व उस पर बने कई खुबसुरत से प्राचीन पुल. इसे हजार मिनारों वाले शहर के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां अनेकों गोल्डन टावर व डोम वाले चर्च हैं. यहां के भव्य महलनुमा मकान व पत्थर वाली सडकें देखकर लगता है, जैसे समय ठहर गया हो. ऐसा माना जाता है कि हिटलर का प्लान था कि, वह रिटायरमेंट के बाद प्राग में आकर रहेगा. इसलिये द्वितीय विश्व युद्ध में भी प्राग सुरक्षीत रहा.

ऐसा नहीं है कि प्राग में सब कुछ पुराना ही है. इसका एक दुसरा रुप भी है, जो आधुनिक है, मस्ती भरा है, जोश से भरपुर है, जहां तेज संगीत व नृत्य, आर्ट व कल्चर, शानदार खाना है. यहां वह सब कुछ है जो पश्चिमी युरोप के अत्याधुनिक शहरों में उपलब्ध है. आज प्राग दुनिया भर के सैलानियों के लिये एक महत्वपुर्ण स्थल बन चुका है.

यहां की करंसी चेक क्राउन है. 1 क्राउन या कोरुना हमारे 2.80 रुपये के बराबर होता है. वैसे यहां युरो भी प्रचलीत है, जिसकी कीमत लगभग 27 कोरुना के बराबर होती है. युरोपीय युनियन में शामिल होने के बाद, इसे भविष्य में युरो को अपनी करंसी के तौर पर अपनाना ही होगा. 

प्राग में पर्यटकों के देखने के लिये अनेकों स्थान हैं, जैसे प्राग केसल, चार्ल्स ब्रिज, क्लेमेंटियम व नेशनल लाईब्रेरी, ओल्ड टाउन स्क्वेयर एन्ड एस्ट्रोनोमिकल क्लाक, सेंट वाईटस केथेड्रल, चर्च आफ अवर लेडी बिफोर टाईन, नेशनल गेलरी, म्युनिसिपल हाउस, प्राग झू, जेविश क्वार्टर (जोसेफोव), स्ट्राहोव मोनेस्टरी, लेनोन वाल, सेंट निकोलस चर्च, विन्सेस्लास स्क्वेयर, नेशनल म्युजियम, नेशनल थियेटर, डांसिंग हाउस, हिल टाप फोर्ट्रेस. पावडर टावर. इन सभी स्थानों को स्थानीय चेक भाषा में अलग नामों से पुकारा जाता है.

दो – तीन दिन में प्राग को काफी हद तक देखा – समझा जा सकता है. इनमें से कई स्थानों में प्रवेश हेतु प्रवेश शुल्क लगता है. 50 युरो का दो दिन की वैधता वाला प्राग सिटी पास लेने से कई इन स्थानों में प्रवेश के अलावा लोकल बस, ट्राम व मेट्रो का उपयोग किया जा सकता है.  

इस खुबसुरत शहर को ईसा से 1306 वर्ष पुर्व राजा बोय्या द्वारा बसाया गया था. उसनें इस शहर का नाम बोईन्हेम रखा. जो बाद में बोहेमिया साम्राज्य का आधार बना, जो पश्चिम चेक रिपब्लिक से लेकर जर्मनी के बवेरिया प्रांत तक फैला था.  

आधुनिक प्राग का निर्माण चेक साम्राज्ञी लिबुसे व उसके पति राजा प्रिमसी नें आठवीं शताब्दी में किया था. यह माना जाता है कि वल्टवा नदी के किनारे  लिबुसे एक धार्मिक अवतार के रुप में प्रकट हुई और घोषणा की, “मैं यहां एक महान शहर को देख रही हुं, जिसकी किर्ति सितारों को छुएगी”. फिर उसनें एक किले के निर्माण का आदेश दिया, व शहर का नाम प्राग रखा. 

सन 1526 में आस्ट्रिया के शक्तीशाली हेब्सबर्ग घराने के शासक फर्डीनेंड प्रथम नें इसे अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया. इस घराने का शासन यहां प्रथम विश्वयुद्ध तक रहा. इसके बाद 1918 में चेकोस्लोवाकिया का निर्माण हुआ व प्राग उसकी राजधानी बना.

हिटलर नें 1939 में प्राग पर कब्जा किया व इसे जर्मनी का अंग घोषित कर किया. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह देश सोवियत युनियन के सैनिक व राजनैतिक प्रभाव में रहा. लेकिन छात्रों व पुलिस के बीच हुई एक झडप के बाद वेलवेट क्रांती हुई, जिसके नतीजे में सन 1993 में चेकोस्लोवाकिया का विभाजन होने से चेक रिपब्लिक व स्लोवाकिया दो देश बनें. आज चेक रिपब्लिक सेंट्रल युरोप में स्थित एक छोटा सा देश है, जिसका क्षेत्रफल लगभग अस्सी हजार वर्ग किलोमीटर व आबादी एक करोड है. 

रुसी साम्यवाद का आयरन कर्टन हटने के बाद, यहां एक बदलाव की बयार चली, जिसके नतीजें में प्राग युरोप का एक महत्वपुर्ण सांस्कृतिक व पर्यटल स्थल बन गया. एक सर्वेक्षण के अनुसार यह शहर दुनिया के प्रमुख 6 पर्यटक स्थलों में शामिल है. यहां हर साल 65 लाख से अधिक अंतर्राष्ट्रिय पर्यटक आते हैं. पश्चिमी युरोप के प्रमुख शहरों के मुकाबले में सस्ता होने के कारण प्राग पर्यटकों का पसंदीदा स्थल बनता जा रहा है.  यहां की गर्मियां में दिन लम्बे व सुहानी होते हैं. जबकी सर्दियों में दिन काफी छोटे होते हैं, किन्तु बर्फबारी के कारण शहर की खुबसुरत बढ जाती है.

अगले दिन सुबह होटल से पौन किलोमीटर पैदल चलकर विन्सेसलास स्क्वेयर पहुंचा. यह प्राग का एक महत्वपुर्ण चौक है, जिसका नाम बोहेमिया के संरक्षक संत विन्सेसलास के नाम पर रखा है. यहां उनकी एक विशाकाय मुर्ती भी खडी है. चौदहवीं शताब्दी में चार्ल्स चतुर्थ के राज्य में यहां घोडों के क्रय विक्रय हेतु बाजार लगता था. यही पर पानी का एक विशाल व मन मोहक फव्वारा लगा है.

इसी चौक पर अठारहवीं शताब्दी में बनी एक खुबसुरत इमारत में स्थित है, नेशनल म्युजियम. यहां प्रथम सदी का रोमन कृतियों का भी बहुत बडा संग्रह है. इस संग्र्हालय में कई विभाग बने हुए हैं, जिनमें दुनिया भर से लाई गई अनेकों कलाकृतिया रखी गई हैं. प्रवेश शुल्क है 120 चेक क्राउन (5 युरो).  

म्युजियम के सामने एक काफी चौडा मार्ग है, जिस पर दोनों ओर खडे हैं भव्य मकान, दुकाने व रेस्टोरेंटस, जो सैलानियों को फोटो लेने के लिये अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं. कभी इस सडक पर ट्राम चला करती थी, जिसके अवशेष आज भी यहां रखे हैं. यहां तक की एक जगह सडक के बीचों बीच पटरी पर खडे ट्राम के एक खाली कोच को रेस्टोरेंट में तब्दील कर दिया है. 

म्युजियम देखने के बाद इस राजमार्ग पर पैदल चलते हुए मैं तकरीबन डेढ किलोमीटर दुरी पर ओल्ड टाउन स्क्वेयर की ओर चला. यह विशाल चौक प्राग का केन्द्र स्थल है. यहां पहुंच कर ऐसा लगा जैसे मैं मध्ययुग में पहुंच गया हुं.

यहां पन्द्रहवी शताब्दी में बनी कई डायल वाली एक विशालकाय खगोलिय घडी एक उंचे टावर पर लगी है. हर एक घंटे में इसके उपर बनी दो खिडकीयों में से 12 देवदुतों की यंत्रचलित आदमकद मुर्तीया परेड के रुप में एक एक करके सामने आती हैं. यह नजारा देखने हजारों पर्यटक चौक में एकत्रीत हो जाते हैं. वैसे यहां दिन भर मेला लगा रहता है. 

इस चौक के आसपास कई दर्शनिय स्थल व प्राचीन भवन हैं. जैसे पन्द्रहवीं शताब्दी में बना 80 मीटर उंचा टाईन चर्च, क्लेमेंटीनम, ओल्ड टाउन हाल, जेवीश क्वार्टर इत्यादी. 1992 में इस ऐतिहासिक चौक को युनेस्को की हेरिटेज साईट में शामिल कर लिया है.

यहीं मैनें एक दुकान पर खुबसुरत कठपुतलियां लटकी देखीं तो बरबस रुक गया. दुकानदार नें मुस्कुराते हुए हिन्दी में कहा, नमस्ते आपका स्वागत हैं. शक्ल सुरत से तो वह स्थानीय नागरिक दिख रहा था, किन्तु हिन्दी बोलते सुनकर आश्चर्य हुआ.  

उसनें मुझसे पुछा, हिन्दुस्तानी हो ?. जवाब में हां सुनकर मुझे अंदर ले गया व आदरपुर्वक बिठाया. सुबह का समय था, अतः भीड नहीं थी. उसनें अपना नाम मार्को बतलाया व कहा कि उसके पुर्वज भी हिन्दुस्तान से ही आये थे. यह सुनते ही मुझे रेल्वे स्टेशन पर मिले उन बुजुर्ग की बातें याद आ गई. व मेरी रुची उससे बात करने में बढ गयी. 

मार्को को हिंदी के सिर्फ कुछ शब्द ही आते थे. उसनें मुझे हिन्दी सिनेमा के कुछ पुराने प्रसिद्ध गानों के मुखडे भी सुनाये.  कुछ देर बाद उसका छोटा भाई व पत्नी भी आकर हमारी बातचीत में शामिल हो गये. 

उसकी पत्नी सबीना को इतिहास की अच्छी जानकारी थी. उसनें बतलाया, शाहनामा नामक पुस्तक में एक जिक्र है, कि ईरान के शाह बहराम पंचम नें देखा कि उसके साम्राज्य के गरीब लोग नृत्य - संगीत का आनंद नहीं उठा पाते हैं. तो उन्होनें सन 421 में हिन्दुस्तानी महाराजा से अनेकों नट, गायक, संगीतज्ञ भेजने को कहा ताकि आम जनता का भी मनोरंजन हो सके.

राजस्थानी व पंजाबी बोलने वाले इन संगीतज्ञों व नर्तकों के समुह के ईरान पहुंचने पर शाह नें सभी को एक बैल, एक गधा, व ढेर सारा अनाज व कुछ धन दिया, ताकी वे खेती कर अपना जीवन यापन कर सकें. बदलें में उन्हें ईरान की गरीब जनता का मनोरंजन करना था. किन्तु हिन्दुस्तान से आये इन लोगों नें कोई काम धाम नहीं किया व दिया गया सारा सामान, यहां तक की बैलों को भी मारकर खा पीकर खत्म कर दिया. जब सब कुछ खत्म हो गये व भुख प्यास के मारे उनके पेट अंदर व गाल पिचकनें लगे. तो वे फिर से पहुंच गये शाह के दरबार में. उनकी यह हालत देखकर शाह बहराम बहुत नाराज हुआ व उन्हें नाकारा समझ, अपने राज्य की सीमा से बाहर जाने का आदेश दिया.  

लगभग 1,500 वर्ष पुर्व गायक, नर्तकों व संगीतज्ञों का यह समुह ईरान से निष्कासित होने के बाद, हिन्दुस्तान लौटने के बजाय युरोप की ओर बढता चला गया. नृत्य - संगीत को अपनी आजीविका बनाते हुए, गाडीयों में अपना घर – बार लेकर ये घुमंतु या खानाबदोश के रुप में देश देश भटकते रहे. अंत में करीब 900 वर्ष पुर्व युरोप पहुंचे. उसके बाद वे छोटे टुकडों में बंटकर बाल्कन देशों में चले गये. वर्तमान में युरोप के रोमानिया, चेक रिपब्लिक, स्लोवेनिया, बुल्गारिया, हंगरी, अल्बानिया, बोस्निया, ग्रीस, क्रोशिया जैसे अनेकों देशों में ये निवास करते है.

करीब हजार वर्ष पुर्व महमुद गजनी जैसे क्रुर अफगानी शासक नें हिन्दुस्तान पर आक्रमण कई आक्रमण किये. हर बार वह लुटी हुई दौलत के साथ पराजित सैनिकों व आम जनता को भी गुलाम बना कर अपने साथ ले गया. जो कालांतर में अफगानिस्तान व ईरान से भागने के अवसर मिलने पर युरोप की तरफ बढते चले गए. 

शायद रोमानिया में इनकी संख्या अधिक होने के कारण कारण इन्हें रोमानी कहा जाता है. पर अमेरिका में इन्हें जिप्सी नाम से जाना जाता है. इस घुमंतु जाति को दुनिया में कई नामों से पुकारा जाता है. जैसे फ्रेंच में गिटान, स्पेनिश में गिटानो, तुर्की में किप्टी के अलावा इनके और भी कई नाम हैं जैसे काले, मानुश, सिन्ती (सिन्धी का अपभ्रंश). 

हिन्दुस्तान में इन्हें हिप्पी पुकारा जाता है. सत्तर के दशक में ये हिप्पी, अपनें स्वछंद अंदाज के कारण बहुत प्रसिद्ध हुए थे. इसी दौरान इन लोगों पर देव आनंद व जीनत अमान की फिल्म “हरे रामा हरे कॄष्णा” प्रदर्शित हुई थी.

सन 1971 में पहली अतर्राष्ट्रीय रोमा कांग्रेस लंदन में आयोजित की गई. जिसके लिये भारत सरकार व क्रिश्चियन मिशनरिज नें कुछ धन दिया था. उसके बाद से यह सम्मेलन दुनिया के कई देशों में होता रहता है. हाल ही में हुई अतर्राष्ट्रीय रोमा कांग्रेस में भारत सरकार के प्रतिनिधी नें कहा था कि ये रोमा या जिप्सी समाज के लोग भारत के बच्चे हैं. इस  यह मांग रखी गई कि दुनिया के तीस देशों में फैले इस घुमंतु समाज को प्रवासी भारतीय के रुप में मान्यता मिलनी चाहिये. 

प्रति वर्ष गर्मियों के मई माह में प्राग में पांच दिनी रोमा फेस्टिवल “खमोरो” मनाया जाता है. उस दौरान शहर के मुख्य मार्गों से रोमानी पुरुष व महिलाएं हिन्दुस्तानी बंजारों से मिलती जुलती वेशभुषा में संगीत पर नृत्य करते हुए चलते हैं. वैसे भी रोमानी लोग नृत्य व संगीत के शौकीन होते हैं. ये स्पेनिश फ्लेमिंगो से मिलता जुलता नॄत्य करते हैं.

ऐसा माना जाता है कि युरोप व अमेरीका के लगभग 30 देशों मे 1.20 करोड के लगभग रोमानी या जिप्सी लोग निवास करते हैं. 19th शताब्दी में युरोप से लगभग दस लाख जिप्सी अमेरिका, व आठ लाख ब्राजील चले गये. अनेकों कारणों से कई रोमानी लोग अपनी नस्ल को जनगणना में छिपा लेते हैं. जिसके कारण इनकी संख्या का सही आंकडा नहीं आ पाता है.

रोमानी भाषा में कई शब्द हमारे जाने पहचाने हैं, जैसे गिनती के लिये ऐख, दुज, त्रीन, स्टार, पांद्ज, छोव, इफ्ता, ओक्टो, इन्या, देस. इनकी भाषा में हिन्दी, सिन्धी व पंजाबी के अनेकों शब्दों के अपभ्रंश शामिल है. 

अधिकांश रोमानी क्रिश्चियन या इस्लाम धर्म का पालन करते हैं, परन्तु इनकी पारिवारीक संरचना हिन्दुओ जैसी होती है. रुढीवादी जिप्सी, संयुक्त परिवार प्रथा में विश्वास रखते है. इसके अलावा महिलाओं के विवाह से पहले कौमार्य का विशेष ध्यान रखा जाता है. आज भी बाल विवाह का प्रचलन है. यहां तक की रजस्वला होने पर स्त्री को घर में विशेष ध्यान रखना पडता है. किन्तु मृत्यु होने पर शरीर को गाडने का रिवाज है.  

मध्ययुग में इनके साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता था. फ्रांस, जर्मनी, इटली, पुर्तगाल नें तो इन्हें अपनी सीमा से भगा दिया था. हर जगह इन्हें दुत्कारा जाता था. कोई देश इन्हें पनाह देने को तैयार नहीं होता था. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी सेना नें यहुदीयों के साथ इन पर अत्याचार किये, लाखों लाख रोमानी लोगों को नाजी कैंपों में भेजकर मार डाला गया.

यहां तक की 1980 में चेकोस्लोवाकिया में, इनकी आबादी को बढने से रोकने के लिये रोमा महिलाओं की नसबंदी कर दी जाती थी, ताकी वे बच्चे पैदा ना कर सके. अपने समुदाय पर हुए दुखों का वर्णन करते हुए, सबीना की आंखों से आंसु टपकने लगे.

दर दर भटकने के कारण अधिकांश रोमानी स्थायी मकान नहीं बना पाये. आज भी शहरों के बाहर टेंट लगाकर केम्पों में रहते हैं. कई शहरों में ये लोग बसों या ट्रकों में अपना माल असबाब लेकर, किसी खाली जगह पर डेरा डाले रहते हैं. इसी कारण इनके पास मुलभुत सुविधाओं का अभाव रहता है. इनके बच्चे स्कुलों में पढने नहीं जा पाते हैं. स्थानीय जनता से इनकी मेल मुलाकात नहीं हो पाने से, ये समाज की मुख्यधारा से कटे रहे. अतः रोजगार के अवसर की भी कमी रही. मजबुरी में पेट भरने के लिये ये चोरी-चकारी जैसे गलत धंधों में लिप्त होने लगे. किन्तु अब बदलाव आने लगा है, मार्को जैसे लोग खुद का व्यापार करते हैं, व अपने बच्चों को शिक्षीत करने में लगे हैं. ताकी समाज में इन्हें इज्जत मिल सके.

मैं उनकी व्यथा सुनकर बेबस था, उस पराये देश में उनकी कोई मदद तो नहीं कर सकता था. सिर्फ यही कह सका, यदि आप लोग हिन्दुस्तान लौटना चाहो, तो  मैं पुरी मदद करुंगा. इस पर मार्को नें कहा, बरसों पहले उसके पिता हिन्दुस्तान गये गये थे. किन्तु वहां के माहौल में अपने आपको ढाल नहीं पाये व कुछ ही समय में लौट आये. 

हम बातचीत में इतने तल्लीन हो चुके थे कि, कब दोपहर हो गई पता ही नहीं चला. मुझे याद आया कि मैं तो प्राग घुमने आया हुं ना कि इन रोमानी लोगों की रामायण सुननें. किन्तु मार्को नहीं माना, मुझे आग्रहपुर्वक नजदीक के एक रेस्टोरेंट में खाना खिलाने ले गया. विदा लेते हुए उसनें मुझे जबर्दस्ती कुछ कठपुतलियां उपहार में दी. ये चेक पपेट बहुत प्रसिद्ध हैं. प्राग आने वाले सैलानी इन्हें याद के रुप में अपने साथ ले जाते हैं. 

मार्को परिवार से विदा लेकर, वहीं चौक से मैने दो दिनों की अवधि वाला हाप आन हाप आफ बस का टिकट 50 युरो में खरीदा. यह बस शहर के अधिकांश पर्यटक स्थलों तक जाती है. इसकी कीमत में वल्टवा नदी पर बोट भ्रमण के अलावा प्राग केसल व जेविश क्वार्टर का वाकिंग टूर भी शामिल था. 

सबसे पहले मैनें पर्यटक बस में से बिना कहीं उतरे पुरे शहर का एक चक्कर लगाया, जिसमें तकरीबन डेढ घंटा लगा.  बस में इयर फोन लगाकर अंग्रेजी भाषा में चलित कामेंट्री सुनने से मार्ग में आने वाले सभी स्थलों व भवनों के बारे में प्राग के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती रही. अब मुझे प्राग की भव्यता का अहसास हो चुका था. 

अब मैंने तय किया कि हर स्टाप पर उतरकर तसल्ली से उस जगह को देखुंगा. मैरा पहला पढाव था – 18 एकड में फैला प्राग केसल. वास्तुकला का खुबसुरत नमुना यह छोटा सा किला सैलानियों का सबसे पसंदीदा स्थल है. ईस्वी सन 970 में बने एक पहाडी पर बने इस केसल को गिनेस बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड नें दुनिया का सबसे बडा केसल माना है. यहां कभी बोहेमिया साम्राज्य के शासक रहते थे. अब चेक रिपब्लिक के राष्ट्रपति का सरकारी निवास स्थान है, फिर भी सुरक्षा के नाम पर गिनती के सैनिक ही दिखे. 

इस भव्य किले में सेंट वाईटस केथेड्रल, सेंट जार्ज बेसेलिका, पावडर टावर, पुराना शाही महल, व गोल्डन लेन, खुबसुरत शाही बगीचा महत्वपुर्ण स्थान है. यहां से प्राग शहर का व वल्टावा नदी का भव्य नजारा दिखलाई देता है.

प्राग केसल में खडा सेंट वाईटस केथेड्रल, चेक रिपब्लिक का सबसे बडा व महत्वपुर्ण चर्च है. यहां आर्कबिशप आफ प्राग की सीट है. इसमें बोहेमिया के तीन राजाओं के अलावा कई संतो की समाधियां भी हैं. इसकी 97 मीटर उंची मीनार के उपर से प्राग का नजारा भव्य दिखता है. 

शाम किले में ही हो चुकी थी. अब थकान होने लगी थी. होटल पहुंचा, थोडी देर आराम करने के बाद नजदीक में एक हिन्दुस्तानी रेस्टोरेंट “मणी” को खोजा. खाना अच्छा था. यहां कई हिन्दुस्तानी रेस्टोरेन्ट हैं, जैसे लाल किला, मसाला, पिंड, टू ब्रदर्स इत्यादी. 

अगले दिन सुबह मैं जा पहुंचा चार्ल्स ब्रिज. वल्टवा नदी पर सन 1357 में बना यह पुल युरोप के सबसे खुबसुरत पुलों में से एक है.  520 मीटर लम्बे इस पुल पर प्रवेश के लिये बने गोथीक स्टाईल के गेट व 30 मुर्तीया बनी हैं, जो इसकी भव्यता में चार चांद लगा देती हैं. आजकल इस पर सिर्फ पैदल यात्री ही आ जा सकते हैं. पहले यह एक मात्र पुल था जो केसल से ओल्ड टाउन को जोडता था. अब तो नदी पर कई पुल बन गये हैं.

यहीं चार्ल्स ब्रिज के पास स्थित है, पर्यटकों की पसंदीदा ग्रेफिटी वाल. जो एक ऐसे आदमी जान लेनोन को समर्पित है जो कभी प्राग नहीं आया. इस दिवाल पर रंग बिरंगी पेंटींग्स की हुई है.  

शहर के प्रमुख स्थानों पर जहां पर्यटकों का तांता लगा रहता है, वहां अनेकों तरह के वाध्य यंत्र बजाने वाले, करतब करने वाले व स्वांग रचने वाले स्ट्रीट कलाकार, अपनी कला का प्रदर्शन करते दिख जाते हैं.  

इसके बाद मैनें गाईड के साथ जेविश क्वार्टर जिसे जोसेफोव भी कहा जाता है का वाकिंग टुर किया, जो मेरे टिकट में शामिल था. इसका निर्माण सन तेहरवीं शताब्दी के आसपास हुआ था. सदियों तक यह झोपडपट्टी के रुप में जाना जाता था, लेकिन अठारहवीं शताब्दी में इसका पुनर्निर्माण किया गया, व यहां यहुदियों के महत्वपुर्ण भवन बनाये गये. जैसे जेविश म्युजियम, स्पेनिश सिनेगाग, मैजेल सिनेगाग, पिंकास सिनेगाग, पुराना यहुदी कब्रिस्तान, क्लाउस सिनेगाग इत्यादी. 

नेशनल गेलरी प्राग का एक महत्वपुर्ण व तुलनात्मक रुप से आधुनिक भवन है, जिसमें युरोप की कई महान कलाकारों जैसे एल ग्रेको, गोया, रुबेन्स, रेम्ब्रां, फान गोये की कलाकृतीया रखी हैं. इसी प्रकार वल्टवा नदी के किनारे प्राग का नेशनल थियेटर, कला प्रदर्शन का एक महत्वपुर्ण स्थान है. यहां स्थानीय चेक भाषा में सांस्कृतीक कार्यकृम होते रहते हैं. प्राग का म्युनिसिपल हाउस भी एक भव्य व खुबसुरत भवन है.


क्लेमेंटिनम में भी कई ऐतिहासिक भवन हैं, जिसमें महत्वपुर्ण है नेशनल लाईब्रेरी. 1782 में बने इस भवन में  60 लाख से ज्यादा किताबें हैं. 

डांसिंग हाउस आधुनिक वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.  इसके भवन के दोनों टावर नृत्य करते हुए दिखते हैं. इनमें से एक टावर ऐसा लगता है जैसे कोई महिला डांसर स्कर्ट पहने हुए डांस कर रही हो. यह प्रसिद्ध अमेरिकन डांसर फ्रेड व जिंजर को समर्पित है. इसमें अनेकों वाणिज्य कार्यालय व रेस्टॉरेंट हैं. 

1931 में बना प्राग का चिडियाघर दुनिया के दस खुबसुरत झू में से एक है. 143 एकड में फैले इस झू मे 4800 से अधिक जानवर हैं, जिनमें से कई तो विलुप्त होने की कगार पर हैं. हिन्दुस्तान के चिडियाघरों के मुकाबले में इस अत्याधुनिक झू में देखना एक यादगार अनुभव है. यहां का प्रवेश शुल्क लगभग 8 युरो है. 

प्राग एक अंतराष्ट्रारीय पर्यटक स्थल होने से यहां दुनिया भर का भोजन उपलब्ध है. यहां की पाकशैली की अपनी विशेषता है, पर यह स्वयं भी नजदीक के देशों की पाक शैली से प्रभावित है. यहां तक की चेक गणराज्य के कुछ व्यंजन तो पुरे युरोप में प्रसिद्ध है.  

प्राग को बीयर केपीटल भी कहा जाता है. यह माना जाता है कि यहां बीयर का निर्माण पिछले एक हजार सालों से हो रहा है. यहां बीयर की औसत खपत भी दुसरे देशों के मुकाबले में कहीं अधिक है. यहां सुबह 11 बजे से ही बीयर बार में भीड एकत्रीत होना शुरु हो जाती है. 

चेक भोजन में आजकल मीट का प्रयोग ज्यादा होने लगा है. वैसे परम्परागत तरीके में मीट का उपयोग सिर्फ सप्ताहांत में ही होता था. साधारणतया भोजन को दो या तीन चरणों में परोसा जाता है. सबसे पहले सुप लिया जाता है. फिर मुख्य व्यंजन, व अंत में डेसर्ट परोसा जाता है.

यहां मुख्य भोजन में गैहुं या आलू से बनी ब्रेड जिसे डंपलिंग्स कहते हैं, को जिसे पालक, गोभी, भुने हुए प्याज या मीट के साथ परोसने का रिवाज है. इसके अलावा नुडल्स, चावल, राईस पुडींग, नमकीन तले हुए आलू,  पास्ता, सलाद भी खाये जाते हैं. इसके अलावा कई तरह की ब्रेड व पेस्ट्री भी मिलती है. 

मुझ जैसे शुद्ध शाकाहारी के लिये भी यहां बहुत कुछ खाने को उपलब्ध है, जिनमें से कई का स्वाद मैनें मार्को के साथ चखा था. जैसे डील सुप, पोटाटो पेनकेक, नोच्ची विथ शीप चीज, फाईड चीज, बार्ली विथ मशरुम, फ्राईड कलीफ्लावर, फ्राईड मशरुम, सलाद, फ्रुट डंपलिंग्स, सुप इत्यादी. इन व्यंजनों को स्थानीय चेक भाषा में अलग नामों से जाना जाता है. 

प्राग वास्तव में एक खुबसुरत शहर हैं. जहां की पुरानी संकडी गलियों में घुमने का अलग ही आनंद है. एक बार में यहां मन नहीं भरता. निश्चित रुप से दुबारा आने का दिल करता है. 

Vinod The Traveler

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